मुख्य बिंदु:
पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने बाबरी मस्जिद को बताया “मूल रूप से अपवित्र”, विवाद बढ़ा
प्रोफेसर जी. मोहन गोपाल ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल करने की दी चेतावनी
चंद्रचूड़ बोले: मेरे बयान को तोड़ा-मरोड़ा गया, फैसला सबूतों और कानून के आधार पर था
राम मंदिर विवाद में फिर कानूनी मोड़? पूर्व CJI के बयान से उठे सवाल
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण अब अपने अंतिम चरण में है, लेकिन इस शांत हो चुके मुद्दे में एक बार फिर कानूनी हलचल शुरू हो गई है। कारण बना है भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ का एक इंटरव्यू में दिया गया विवादास्पद बयान, जिसमें उन्होंने बाबरी मस्जिद को “मूल रूप से अपवित्र” बताया।
उनके इस बयान के बाद न सिर्फ विवाद खड़ा हुआ है, बल्कि फैसले पर दोबारा कानूनी चुनौती देने की बात भी सामने आ रही है।
क्या बोले थे पूर्व CJI चंद्रचूड़?
एक मीडिया इंटरव्यू में पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि:जिस जगह पर पहले से कोई धार्मिक स्थल मौजूद हो, और वहां कोई नया ढांचा बनाया जाए, तो वह मूल रूप से अपवित्र कहलाता है।”
उनकी इस टिप्पणी को बाबरी मस्जिद से जोड़ा गया, और कहा गया कि उन्होंने मस्जिद को ही अवैध और अपवित्र करार दिया। यह बयान ऐसे समय आया है जब राम मंदिर का उद्घाटन हाल ही में हुआ है और देश में इसे लेकर सकारात्मक माहौल है।
प्रोफेसर जी. मोहन गोपाल ने क्या कहा?
वरिष्ठ कानून विशेषज्ञ प्रो. जी. मोहन गोपाल ने चंद्रचूड़ के बयान को सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले से भिन्न बताया। उन्होंने कहा:अगर पूर्व CJI का यह नजरिया होता, तो यह फैसले में झलकना चाहिए था। उनके हालिया बयान के आधार पर हम क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने पर विचार कर सकते हैं।”
उन्होंने दावा किया कि चंद्रचूड़ का यह तर्क न्यायिक निष्पक्षता पर सवाल उठाता है, और इससे फैसले की वैधता पर दोबारा बहस शुरू हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में क्या फैसला दिया था?
साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अयोध्या भूमि विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। पीठ में शामिल थे:
तत्कालीन CJI रंजन गोगोई
जस्टिस एसए बोबडे
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़
जस्टिस अशोक भूषण
जस्टिस अब्दुल नज़ीर
फैसले में कहा गया था कि:
“मुस्लिम पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि विवादित भूमि पर उनका निर्बाध स्वामित्व रहा है। जबकि हिंदू पक्ष ने बेहतर साक्ष्य प्रस्तुत किए।”
इसके बाद राम जन्मभूमि न्यास को ज़मीन सौंपी गई और मस्जिद के लिए अलग जमीन आवंटित की गई।
चंद्रचूड़ ने दी सफाई
विवाद बढ़ने के बाद डीवाई चंद्रचूड़ ने एक स्पष्टीकरण जारी कर कहा:
“मेरे बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है। मैंने सिर्फ सैद्धांतिक रूप से ‘अपवित्रता’ की बात की थी। राम मंदिर का फैसला पूरी तरह साक्ष्यों और कानून के आधार पर हुआ था, आस्था के नहीं।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष थी और कोई व्यक्तिगत विचार या धार्मिक झुकाव उसमें शामिल नहीं था।
क्या फिर से खुलेगा राम मंदिर का केस?
हालांकि कोर्ट के नियमों के अनुसार क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने की प्रक्रिया बेहद कठिन होती है और इसे तभी स्वीकार किया जाता है जब स्पष्ट न्यायिक चूक हो। अब यह देखना होगा कि मोहन गोपाल या किसी संगठन द्वारा वास्तव में कोर्ट में याचिका दाखिल की जाती है या नहीं।
निष्कर्ष
राम मंदिर मुद्दा अब एक सांस्कृतिक और धार्मिक यथार्थ बन चुका है, लेकिन पूर्व CJI के बयान ने कानूनी बहस को दोबारा हवा दे दी है। आने वाले दिनों में यह साफ हो जाएगा कि क्या यह सिर्फ एक वैचारिक विवाद है या कोर्ट में दोबारा कोई कानूनी मोर्चा भी खुलता है।

