PKN Live | राजस्थान हाईकोर्ट, जयपुर बेंच ने एक ऐसा निर्णय दिया जिसने एक छात्र के पूरे शैक्षणिक वर्ष को बचा लिया। एडवोकेट रीना गुर्जर की दृढ़ और प्रभावशाली दलीलों के बाद कोर्ट ने उसी दिन आदेश जारी करते हुए छात्र ऋषभदेव सिंह राठौर (बी.ए. एलएल.बी., बैच 2023–27) को चौथे सेमेस्टर की परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दे दी।
यह फैसला न केवल एक छात्र के लिए राहत का कारण बना, बल्कि यह भी दर्शाता है कि न्यायपालिका कितनी संवेदनशील है जब बात किसी छात्र के भविष्य से जुड़ी हो।
विवाद की जड़ – विश्वविद्यालय की प्रक्रिया पर सवाल
डॉ. भीमराव अंबेडकर लॉ यूनिवर्सिटी और उससे संबद्ध सेंट विल्फ्रेड कॉलेज ऑफ लॉ में अध्ययनरत ऋषभदेव सिंह राठौर को विश्वविद्यालय प्रशासन ने चौथे सेमेस्टर की परीक्षा देने से रोक दिया था।
मामला तब उठा जब विश्वविद्यालय ने अपने ही दिशा-निर्देशों के विपरीत दूसरे सेमेस्टर की आंतरिक परीक्षाएँ एक ही दिन — 14 अक्टूबर 2024 — को आयोजित कर दीं।
नियमों के अनुसार, परीक्षाएँ और वाइवा टेस्ट अलग-अलग दिनों में करवाना अनिवार्य है ताकि छात्रों पर अतिरिक्त मानसिक दबाव न पड़े। मगर विश्वविद्यालय ने यह सभी औपचारिकताएँ एक ही दिन में निपटा दीं, जिससे कई छात्रों को परेशानी हुई।
मिड सेमेस्टर टेस्ट न कराना — विश्वविद्यालय की बड़ी चूक
विश्वविद्यालय के परीक्षा नियमों में स्पष्ट उल्लेख है कि मिड सेमेस्टर टेस्ट कराना अनिवार्य है।
यदि यह टेस्ट होता, तो छात्र ऋषभदेव को आवश्यक 11 आंतरिक अंक मिल जाते और वे आगे के सेमेस्टर के लिए योग्य घोषित हो जाते।
परंतु विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह परीक्षा आयोजित ही नहीं की। इतना ही नहीं, वाइवा भी सभी पाँच विषयों का एक ही दिन में ले लिया गया — जो कि परीक्षा संबंधी गाइडलाइंस का सीधा उल्लंघन था।
बीमारी के कारण अनुपस्थिति और अनुचित कार्रवाई
वाइवा परीक्षा के दिन, छात्र ऋषभदेव बीमार थे और चिकित्सकीय कारणों से परीक्षा में उपस्थित नहीं हो सके। उन्होंने मेडिकल सर्टिफिकेट समय पर प्रस्तुत किया, जो रिकॉर्ड में भी दर्ज है।
इसके बावजूद, विश्वविद्यालय ने सिर्फ एक दिन की चिकित्सकीय अनुपस्थिति के आधार पर पूरे सेमेस्टर में उन्हें फेल घोषित कर दिया।
यह निर्णय “प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत” (Principles of Natural Justice) के विपरीत था। किसी भी छात्र को केवल एक प्रमाणित मेडिकल कारण के चलते सेमेस्टर में असफल ठहराना न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता।
अदालत में हुई सुनवाई – रीना गुर्जर की तर्कपूर्ण दलीलें
छात्र ने न्याय की मांग में मामला राजस्थान हाईकोर्ट, जयपुर बेंच में दाखिल किया।
29 अक्टूबर 2025 को इस मामले की सुनवाई के दौरान, एडवोकेट रीना गुर्जर ने छात्र की ओर से मजबूती से पक्ष रखा।
उन्होंने अदालत को बताया कि विश्वविद्यालय ने अपने ही बनाए नियमों का पालन नहीं किया और छात्र को अनुचित रूप से नुकसान पहुंचाया।
उन्होंने यह भी कहा कि जब छात्र तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा सफलतापूर्वक पास कर चुका है, तो उसे चौथे सेमेस्टर की परीक्षा देने से रोकना पूरी तरह अनुचित है।
हाईकोर्ट का त्वरित और निष्पक्ष निर्णय
माननीय न्यायमूर्ति संजीत पुरोहित ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद तुरंत निर्णय सुनाया।
सुबह 11 बजे सुनवाई शुरू हुई और लगभग 12 बजे आदेश जारी हुआ — जिसमें कहा गया कि छात्र को उसी दिन दोपहर 1 बजे से होने वाली चौथे सेमेस्टर की परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाती है।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि छात्र के परीक्षा परिणाम आगे चलकर न्यायालय के अंतिम आदेश पर निर्भर रहेंगे, लेकिन परीक्षा में शामिल होने का अवसर दिया जाना आवश्यक है।
कोर्ट की टिप्पणी – “छात्र के भविष्य से नहीं खेला जा सकता”
अदालत ने अपने आदेश में यह भी टिप्पणी की कि जब छात्र ने तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा पास कर ली है, तो उसे अगले सेमेस्टर से वंचित रखना उसके पूरे वर्ष की बर्बादी होगी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालयों को अपने दिशा-निर्देशों और नियमों का पालन करना चाहिए, ताकि छात्रों के साथ इस प्रकार की अन्यायपूर्ण स्थिति दोबारा न बने।
रीना गुर्जर की भूमिका — न्याय तक पहुँचाने वाली पैरवी
इस पूरे मामले में एडवोकेट रीना गुर्जर ने अपनी कानूनी समझ, समयबद्धता और प्रभावशाली दलीलों से अदालत को यह विश्वास दिलाया कि छात्र के साथ अन्याय हुआ है।
उनकी पैरवी के परिणामस्वरूप न केवल ऋषभदेव सिंह राठौर को राहत मिली, बल्कि यह मामला उन सभी छात्रों के लिए एक प्रेरणा बन गया जो शिक्षा संस्थानों की लापरवाही का शिकार होते हैं।
कानूनी महत्व और व्यापक प्रभाव
यह निर्णय शिक्षा और न्याय दोनों के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
यह बताता है कि कानून का उद्देश्य सिर्फ सजा देना नहीं, बल्कि न्याय सुनिश्चित करना है।
साथ ही यह विश्वविद्यालयों को यह याद दिलाता है कि वे प्रशासनिक लापरवाही से किसी छात्र का भविष्य खतरे में नहीं डाल सकते।
यह मामला दिखाता है कि यदि किसी छात्र के साथ अन्याय होता है, तो न्यायपालिका उसके अधिकारों की रक्षा करने के लिए तत्पर रहती है।
भविष्य के लिए सीख
यह फैसला उन सभी विश्वविद्यालयों के लिए एक चेतावनी है जो अपने ही नियमों की अनदेखी करते हैं।
शिक्षा संस्थानों को चाहिए कि वे न केवल शैक्षणिक गुणवत्ता पर ध्यान दें, बल्कि प्रशासनिक न्याय और पारदर्शिता पर भी बराबर फोकस करें।
छात्र ऋषभदेव के लिए यह फैसला केवल एक कानूनी जीत नहीं, बल्कि भविष्य के लिए नई उम्मीद लेकर आया है।
और इस न्याय की लड़ाई में एडवोकेट रीना गुर्जर की भूमिका वाकई सराहनीय रही।

