गोपाष्टमी पर स्वामी आनंदेश्वरानंद गिरी का संदेश : गौमाता की सेवा ही सच्ची भक्ति, गोसंरक्षण को जीवन का संकल्प बनाएं

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गोपाष्टमी के पावन पर्व पर हिंदू जागरण मंच के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी आनंदेश्वरानंद गिरी जी महाराज ने देशवासियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह दिन केवल उत्सव नहीं, बल्कि गौमाता के प्रति श्रद्धा, सेवा और समर्पण का प्रतीक है।

उन्होंने अपने संदेश में कहा —

“गौमाता हमारे धर्म, अर्थ, स्वास्थ्य और समृद्धि का आधार हैं। उनके चरणों में सौभाग्य, कल्याण और अन्न-धन का वास है। जिस घर में गौ सेवा होती है, वहाँ सुख और समृद्धि स्वतः निवास करती है।”

🌿 गोपाष्टमी का महत्व और श्रीकृष्ण से जुड़ी कथा

स्वामी आनंदेश्वरानंद गिरी जी ने बताया कि गोपाष्टमी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार गौचारण (गाय चराने) का संकल्प लिया था।
यही दिन था जब श्रीकृष्ण ने अपने जीवन को गौसेवा के लिए समर्पित किया।

उन्होंने कहा —

“भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था — ‘गावो मे अग्रतः सन्तु, गावो मे सन्तु पृष्ठतः, गावो मे परितः सन्तु, गवां मध्ये वसाम्यहम्’ — अर्थात मेरे आगे, पीछे और चारों ओर केवल गायें हों, मैं उन्हीं के बीच निवास करता हूँ।”

इसी भावना के कारण श्रीकृष्ण को ‘गोपाल’ कहा गया — यानी जो गौ की रक्षा करता है वही सच्चा गोपाल है।

🐄 सेवा और समर्पण का पर्व — गोपाष्टमी

गोपाष्टमी का पर्व सेवा, श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है।
स्वामी जी ने बताया कि जब श्रीकृष्ण आठ वर्ष के थे, तब उन्होंने पहली बार गायों की सेवा आरंभ की थी।
तभी से यह परंपरा बनी कि इस दिन गायों की पूजा की जाती है और गोपालकों (ग्वालों) को सम्मान दिया जाता है।

उन्होंने कहा —

“भारतीय संस्कृति में गोपाष्टमी को ‘गो लक्ष्मी पूजन दिवस’ भी कहा जाता है। अष्ट लक्ष्मियों में से एक ‘गो लक्ष्मी’ के रूप में गौमाता का उल्लेख मिलता है, जो सौभाग्य और समृद्धि की प्रतीक हैं।”

🌸 कैसे करें गौ सेवा और पूजन

स्वामी आनंदेश्वरानंद गिरी जी ने भक्तों को बताया कि गोपाष्टमी के दिन गौमाता की सच्चे मन से सेवा और पूजन करना चाहिए।
उन्होंने कहा —

“गाय के माथे पर चंदन लगाएं, उन्हें पुष्पमाला पहनाएं, हरा चारा और गुड़ खिलाएं। उनकी आरती करें और उनके चारों ओर परिक्रमा करें। यही सच्ची गोभक्ति है।”

उन्होंने कहा कि गोशालाओं में सेवा का संकल्प लेना चाहिए।
शास्त्रों में कहा गया है —

“गवां कण्डूयनान्मर्त्यः सर्वं पापं व्यपोहति, तासां ग्रास प्रदानेन महत्पुण्यमवाप्नुयात्।”
अर्थात जो व्यक्ति गौमाता को भोजन कराता है, वह महान पुण्य प्राप्त करता है और उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

🪔 ‘गोग्रास’ परंपरा को फिर से अपनाने की अपील

स्वामी आनंदेश्वरानंद गिरी जी ने समाज से एक भावनात्मक अपील करते हुए कहा —

“हम सबको प्रतिदिन भोजन से पहले गौमाता के लिए ‘गोग्रास’ निकालने की परंपरा को फिर से जीवित करना चाहिए। यह परंपरा केवल धर्म नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की आत्मा है।”

उन्होंने सुझाव दिया कि हर घर में एक छोटा गुल्लक (गोसेवा निधि) रखा जाए, जिसमें रोज़ दस रुपये गौ सेवा के लिए डालें।

“यदि हर घर से थोड़ा-सा सहयोग निकलने लगे, तो देश की सभी गोशालाएं आत्मनिर्भर बन सकती हैं और समाज में करुणा व एकता का भाव फिर से जाग उठेगा।”

🌺 गोपाष्टमी का सांस्कृतिक और पर्यावरणीय संदेश

स्वामी जी ने कहा कि गाय केवल एक पशु नहीं, बल्कि ‘विश्व की माता’ हैं।

“गावो विश्वस्य मातरः” — गाय सम्पूर्ण विश्व की माता है।

उन्होंने बताया कि गोपाष्टमी का संदेश केवल धार्मिक नहीं, बल्कि पर्यावरण और प्रकृति संरक्षण से भी जुड़ा है।
गौमाता के गोबर और गोमूत्र का उपयोग खेती, औषधि और पर्यावरण शुद्धिकरण में किया जाता है, जो आज के युग में अत्यंत आवश्यक है।

“जब तक गौमाता सुरक्षित हैं, तब तक हमारी संस्कृति जीवित है। गोसेवा से न केवल धर्म की रक्षा होती है, बल्कि धरती भी समृद्ध होती है।”

🕉️ वंदे धेनु मातरम् — गोसंरक्षण का राष्ट्रीय संकल्प

अंत में स्वामी आनंदेश्वरानंद गिरी जी ने सभी देशवासियों से आह्वान किया —

“गौमाता की सेवा केवल पूजा नहीं, बल्कि राष्ट्र की शक्ति का स्रोत है।
आइए, इस गोपाष्टमी पर हम सब मिलकर संकल्प लें —
कि हम गौसंरक्षण, गोसेवा और गोसंवर्धन को अपने जीवन का अंग बनाएंगे।”

उन्होंने अपने संदेश का समापन इन शब्दों के साथ किया —

“वंदे धेनु मातरम्।”

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